नई दिल्ली। कहते हैं कि सोते समय सिर दक्षिण में और पैर उत्तर दिशा की ओर होने चाहिए क्योंकि साधारण चुंबक शरीर से बांधने पर वह हमारे शरीर के ऊत्तकों पर विपरीत प्रभाव डालता है। जन्म और मृत्यु से जुड़े कई संस्कारों का वर्णन शास्त्रों में भी वर्णन देखने को मिलता है। हिंदू धर्म में जन्म के बाद मंगलमय जीवन के लिए रीति-रिवाज के अनुसार कई संस्कार किए जाते हैं तो वहीं मृत्यु के बाद भी कुछ परंपराए निर्धारित हैं।
इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा है मौत के बाद मृतक का सिर उत्तर दिशा की ओर रखने की।इस परंपरा को निभाते तो अधिकांश लोग हैं लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि मृतक का सिर उत्तर दिशा की ओर ही क्यों रखना चाहिए? दरअसल आत्मा नश्वर है और शरीर नष्ट होने वाला है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है।
शरीर का अंत मृत्यु के साथ ही हो जाता है। मृतक का सिर उत्तर की ओर करके इसलिए रखते हैं कि प्राणों का उत्सर्ग दशम द्वार से हो। चुम्बकीय विद्युत प्रवाह की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर होती है। कहते हैं मरने के बाद भी कुछ क्षणों तक प्राण मस्तिष्क में रहते हैं। अत: उत्तर दिशा में सिर करने से ध्रुवाकर्षण के कारण प्राण शीघ्र निकल जाते हैं। जीव के प्राण शीघ्र ही मुक्त हो जाते हैं। इसलिए मृतक को हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
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